भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में बढ़ते हुए एनपीए (अधिक ऋणों) के कारण कॉरपोरेशन बैंक के खिलाफ त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही (पी.सी.ए.) संचालित की। बढ़ते हुए ऋण की वजह से बैंक के नेट एनपीए में 10% की वृद्धि हुई और वर्ष 2017 के अंत की दूसरी तिमाही में 1035 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। वर्तमान में बैंक का पूंजी पर्याप्तता अनुपात 10.23% है और मार्च 2018 तक बैंकों को इसे 10.875% बनाए रखने की आवश्यकता है।
एक बार, पी.सी.ए. के लागू होने पर बैंक को शाखाओं को खोलने, कर्मचारियों की भर्ती और कर्मचारियों की वेतन वृद्धि जैसे खर्चों पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है। अब बैंक सिर्फ उन्हीं कंपनियों को उधार दे सकेगा जिनकी उधारी इन्वेस्टमेंट ग्रेड से ऊपर की है।
हालांकि, नियामक कार्रवाही से बैंक की कार्य क्षमता पर “किसी भी प्रकार का भौतिक प्रभाव” नहीं पड़ेगा और यह कार्रवाही संकट प्रबंधन, संपत्ति की गुणवत्ता, मुनाफे और दक्षता में समग्र सुधार में योगदान करेगी।
10 महीनों के अंतराल में, इसी तरह की कार्रवाई अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर भी लगाई गई है – ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी), आईडीबीआई बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, देना बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र। कॉरपोरेशन बैंक आरबीआई द्वारा पीसीए के तहत रखा जाने वाला आठवां बैंक है।
हमने देखा है कि हाल ही की परीक्षा में – आईबीपीएस आरआरबी अधिकारी स्केल I मेंस 2017, आईबीपीएस आरआरबी कार्यालय सहायक मेंस 2017 और एसबीआई पीओ मेंस 2017 परीक्षा में इस विषय से एक प्रश्न पूछा गया था।
तो, आज हम त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही (पी.सी.ए.), यह बैंकों को कैसे प्रभावित करता है, के बारे में चर्चा करेंगे।
पी.सी.ए. क्या है?
त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रस्तुत किया गया एक गुणात्मक उपकरण है जिसके तहत बैंक के वित्तीय स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कमजोर बैंकों पर प्रत्यक्ष कार्रवाही की जाती है और इन्हें अत्याधिक नुकसान से बचाता है।
इसमें कुछ सक्रिय मुद्दों को सम्मिलित कर मुश्किल में पड़े बैंकों पर सुधारात्मक उपायों को आंकना, निगरानी, नियंत्रण और सही मूल्यांकन करने में मदद करेगा। इस प्रकार, पी.सी.ए. अपने वित्तीय स्वास्थ्य को सुरक्षित करने के लिए बैंक के प्रबंधन के साथ मिलकर संलग्न करने के लिए नियामक को एक अवसर प्रदान करता है।
पी.सी.ए. की आवश्यकता क्या है?
1980 और 1990 के शुरुआती दशक में दुनिया भर के कई बैंक और वित्तीय संस्थानों ने वित्तीय संकट के दौरान मौद्रिक नुकसान का सामना किया था। 1600 से अधिक वाणिज्यिक बैंक और बचत बैंक या तो बंद हो गए या फिर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा उन्हें वित्तीय सहायता प्राप्त की गई थी। उनके द्वारा होने वाली हानि बढ़कर 100 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो गई थी।
बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ऐसी घटनाओं से उबारने के लिए उचित निरीक्षणात्मक रणनीति (त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही) की आवश्यकता पैदा हुई।
भारत में पहली बार वर्ष 2002 में आर.बी.आई. गवर्नर बिमल जलान के कार्यकाल में यह प्रस्तुत हुआ और अप्रैल 2017 में आर.बी.आई. गवर्नर उर्जित पटेल ने इसके नियमों को और कड़ा किया। यह आर.आर.बी. को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एस.सी.बी.) पर लागू होता है। इसके दायरे में भुगतान बैंक, एन.बी.एफ.सी. और मुद्रा बैंक नहीं आते हैं।
आर.बी.आई. कब बैंकों पर पी.सी.ए.लागू कर सकता है?
त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही के मापदण्ड – आर.बी.आई. ने मूल्यांकन के लिए चार मापदंड प्रस्तुत किए हैं कि – क्या बैंकों को त्वरित सुधारात्मक कार्यवाही के दायरे के तहत लाया जाना है। इन मापदंडों में से प्रत्येक को स्थिति की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत किया गया है और प्रत्येक श्रेणी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एक अलग सेट की कार्रवाई करता है।
साथ ही, आरबीआई ने प्रत्येक मापदण्ड के लिए तीन संकट सीमा रेखा परिभाषित की हैं और प्रत्येक सीमा रेखा के लिए विशिष्ट सुधारक उपायों भी जोड़ें हैं। सुधारात्मक कार्य बैंक के संकट पर निर्भर करेगा। किसी भी संकट सीमा रेखा के उल्लंघन के परिणामस्वरूप पी.सी.ए. को आमंत्रित करना होगा। अगर संकट अधिक है तो बैंक के लिए सुधारात्मक कार्रवाही अधिक मुश्किल होगी।
जिन मापदंडों पर बैंकों को त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही के लिए योग्य माना जाता है, वह इस प्रकार हैं:
1. सी.आर.ए.आर. या कैपिटल टू रिस्क वेटेड रेशियो– पहला मापदण्ड कैपिटल टू रिस्क वेटेड रेशियो है। यह बैंक की वित्तीय शक्ति का एक उपाय है यदि यह 9% से ऊपर है तो बैंक किसी भी संकट से उबरने के लिए सक्षम माना जाता है। अगर यह 9% से नीचे आता है, तो बैंक को संकट क्षेत्र में माना जाता है और पी.सी.ए. के लिए सूचित किया जाता है।
नोट:
- टीयर -1 की पूंजी के लिए पहली सीमा रेखा – अगर किसी बैंक की टीयर -1 की पूंजी 5.125 और 6.75% के बीच होती है
- टीयर -1 की पूंजी के लिए दूसरी सीमा रेखा – अगर किसी बैंक की टीयर -1 की पूंजी 3.625 और 5.125% के बीच होती है
- टीयर -1 की पूंजी के लिए तीसरा सीमा रेखा – यदि कोई बैंक का टीयर -1 कैपिटल 3.625% के बीच है
2. एन.पी.ए. या गैर निष्पादित सम्पत्ति – दूसरा मापदंड संपत्ति की गुणवत्ता है जिसे बैंक की कुल गैर निष्पादित संपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर खराब ऋणों के कारण एन.पी.ए. प्रतिशत 6% -9% से अधिक हो जाता है तो बैंक को संकटग्रसित बैंक माना जाता है और उसे त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही की आवश्यकता पड़ती है।
नोट:
- यदि किसी बैंक का एन.पी.ए. अनुपात 6-9% है तो बैंक पर पहली सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी।
- यदि किसी बैंक का एनपीए अनुपात 9-12% है तो बैंक पर दूसरी सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी।
- यदि किसी बैंक का एनपीए अनुपात 12% या इससे अधिक है तो बैंक पर तीसरी सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी।
3. परिसंपत्तियों पर लाभ (आर.ओ.ए.) तीसरा मापदण्ड लाभप्रदता है। आर.बी.आई. द्वारा मुनाफे के लिए संपत्ति पर लाभ को बेंचमार्क माना जाता है। यदि परिसंपत्तियों पर रिटर्न 0.25% से नीचे आता है तो बैंक पर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई की जाती है। इस रूप में गणना की जाती है आर.ओ.ए. = कुल आय/ कुल सम्पत्ति
नोट:
- बैंक पर पहली सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी, अगर किसी बैंक के पास लगातार दो वर्षों तक संपत्ति पर नकारात्मक लाभ मिलता है।
- बैंक पर दूसरी सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी, अगर किसी बैंक के पास लगातार तीन वर्षों के लिए संपत्ति पर नकारात्मक लाभ प्राप्त होता है।
- बैंक पर तीसरी सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी, यदि एक बैंक के पास लगातार चार वर्षों के लिए संपत्ति पर नकारात्मक लाभ आता है।
4. लीवरेज अनुपात – चौथा मापदण्ड कुल कर्ज या लीवरेज है जो बैंक के वित्तीय जोखिम को मापता है। यदि बैंक के टीयर-1 का लीवरेज अनुपात 3.5 से 4.0 प्रतिशत के बीच है तो बैंक के लिए त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही की जाती है।
- अगर किसी बैंक का लाभ टीयर –1 पूंजी से 25% अधिक होता है तो तो बैंक पर पहली सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी।
- अगर एक बैंक लीवरेज उसके टीयर –1 पूंजी के 28.6 गुना से अधिक है तो बैंक पर दूसरी सीमा रेखा के तहत त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही होगी।
त्वरित सुधारात्मक कार्रवाही के दौरान, किसी भी खतरनाक गतिविधियों जैसे –
- निवेश ग्रेड से नीचे वाली कंपनियों को ऋण प्रदान करना,
- नए कारोबार के हिस्से के रूप में नई शाखाएं खोलना,
- और बैंक की पूंजी के संरक्षण के लिए अधिक तनाव
- और इसे आर्थिक रूप से मजबूत बनाए रखना आदि से बैंक को दूर रखना जरूरी है।
साथ ही, एन.पी.ए. के शेयरों को विशेष मूल्यांकन से कम किया जाता है और किसी भी नए उत्पन्न एन.पी.ए. में निहित होता है। किसी भी इंटरबैंक ऋण को रोकने के लिए आर.बी.आई. द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हैं। संशोधित ढांचे में निगरानी के लिए पूंजी, परिसंपत्ति गुणवत्ता, लाभप्रदता और लाभ का प्रमुख क्षेत्र बने रहना और किसी भी सीमा में उल्लंघन पी.सी.ए. को शुरू किया जाता है। बैंक को लेखा परीक्षित वार्षिक वित्तीय परिणामों और आर.बी.आई. द्वारा किए गए निरीक्षणात्मक मूल्यांकन के आधार पर पी.सी.ए. ढांचे के अधीन किया जाता है।
आखिरकार, निवेश, उत्पादन, उपभोग की बचत, रोजगार और धन के न्यायसंगत वितरण जैसे बेहतर व्यापक आर्थिक सिद्धांतों के मामले में अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए एक मजबूत बैंकिंग प्रणाली की आवश्यकता होती है।
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